वियोगी होगा पहला कवी
आह से निकला होगा गान
निकलकर नैनो से चुप चाप
वोही होगी कविता अनजान
Thursday, September 16, 2010
एक विचार
शाम सूरज को ढलना सिखाती है
शमा परवाने को जलना सिखाती है
गिरनेवाले को तकलीफ तोह जरुर होती है
पर ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है
शमा परवाने को जलना सिखाती है
गिरनेवाले को तकलीफ तोह जरुर होती है
पर ठोकर ही इंसान को चलना सिखाती है
Saturday, March 27, 2010
ज़िन्दगी
जिंदगियों की महफ़िल सजाई तोह मौत खफा हुई,
हमने मौत से कहा "एह मौत, ज़िन्दगी कितनी भी शौहरत की ऊँचाइयों को चूहले, पर तुझसे कहाँ जीत पाई"
Friday, March 26, 2010
आज उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, शायद पुरानी हो गयी है वोह...
मुझे आज भी याद है वोह दिन जब वोह इठलाती थी एक खिले हुए फूल की तरह, चन्द रोज़ हुए थे उसे आकर,
जब भी कोई बैठता तोह बड़ी अदा से लहराहती थी वोह,
कभी कोई छेद देता तोह झूम उतठी वोह,
खिली खिली, खुश गुवार नाम था उसका...सब चाहते थे उसे....फिर भी.....
आज उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, शायद पुरानी ही हो गयी है वोह...
मुझे आज भी याद है वोह दिन जब वोह इठलाती थी एक खिले हुए फूल की तरह, चन्द रोज़ हुए थे उसे आकर,
जब भी कोई बैठता तोह बड़ी अदा से लहराहती थी वोह,
कभी कोई छेद देता तोह झूम उतठी वोह,
खिली खिली, खुश गुवार नाम था उसका...सब चाहते थे उसे....फिर भी.....
आज उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, शायद पुरानी ही हो गयी है वोह...
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