आज उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, शायद पुरानी हो गयी है वोह...
मुझे आज भी याद है वोह दिन जब वोह इठलाती थी एक खिले हुए फूल की तरह, चन्द रोज़ हुए थे उसे आकर,
जब भी कोई बैठता तोह बड़ी अदा से लहराहती थी वोह,
कभी कोई छेद देता तोह झूम उतठी वोह,
खिली खिली, खुश गुवार नाम था उसका...सब चाहते थे उसे....फिर भी.....
आज उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, शायद पुरानी ही हो गयी है वोह...